‘‘रावी ने सरकारे सादिक़ से पूछा के एक ‘ाख़्स आपकी अहादीस रिवायत करता और मशहूर करता और शियों के क़ुलूब की इस्लाह करता है और दूसरा ‘ाख़्स आबिद है मगर वह रिवायत नहीं करता आपकी अहादीस को, उनमें कौन अफ़ज़ल है? फ़रमाया हमारी अहादीस की रिवायत करने वाला हज़ार आबिदों से बेहतर है।
- वह बदबख़्त ‘ाक़ीउलक़ल्ब हलाक होगा, जो बावजूद यह जानने के के यह हदीसे मासूम (अ0) है, उससे इनकार करे और उससे इनकार करने वाला काफ़िर होगा।
आइम्मा (अ0) अल्लाह के नूर हैं- आइम्मा (अ0) अल्लाह के नूर हैं, नूरे इमाम क़ुलूबे मोमेनीन में है, वह निस्फ़ुलनहार सूरज से ज़्यादा रोशन होता है, आइम्मा, मोमेनीन के क़ुलूब को मुनव्वर कर देते हैं, अल्लाह उनके नूर से जिसको चाहता है छिपाता है तो लोगों के कु़लूब तारीक हो जाते हैं, जब तक अल्लाह किसी के क़ल्ब को पाक न करे वह इन्सान हमसे मोहब्बत व दोस्ती नहीं रखता, हमसे सुलह रखने वाला क़ल्ब अल्लाह से सख़्त अज़ाब से और रोज़े क़यामत के अज़ीम ख़ौफ़ से महफ़ूज़ रहता है।
आइम्मा (अ0) हुज्जतुल्लाह- हम अल्लाह की तरफ़ से निशानी, रहनुमा, हुज्जत, जानशीन, अमीन और पेशवा हैं। हम अल्लाह का ख़ूबसूरत चेहरा, देखती हुई आंख सुनने वाले कान हैं हमारे सबब अल्लाह अपने बन्दों को अज़ाब व जज़ा देता है।
आइम्मा (अ0) से मोहब्बत - यूसुफ़ बिन साबित बिन अबी सईद, इमामे सादिक़ (अ0) से नक़्ल करते हैं के जब लोगों ने आपके पास हाज़िर होकर अर्ज़ की के हम आपसे क़राबते रसूल और हुक्मे ख़ुदा की बिना पर मोहब्बत करते हैं और हमारा मक़सद हरगिज़ किसी दुनिया का हुसूल नहीं है, सिर्फ़ रिज़ाए इलाही और आखि़रत मतलूब है और हम अपने दीन की इस्लाह चाहते हैं तो आपने फ़रमाया के तुम लोगों ने यक़ीनन सच कहा है, अब जो हमसे मोहब्बत करेगा वह रोज़े क़यामत दो उंगलियों की तरह हमारे साथ होगा।
आइम्मा (अ0) से मोहब्बत - जो हमसे मोहब्बत करेगा वह क़यामत में हमारे साथ होगा और अगर कोई इन्सान किसी पत्थर से भी मोहब्बत करेगा तो उसी के साथ महशूर होगा।
(इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलातो वस्सलाम)(उसूले काफ़ी जि0 1)
- वह बदबख़्त ‘ाक़ीउलक़ल्ब हलाक होगा, जो बावजूद यह जानने के के यह हदीसे मासूम (अ0) है, उससे इनकार करे और उससे इनकार करने वाला काफ़िर होगा।
(इमाम मोहम्मदे बाक़र अलैहिस्सलातो वस्सलाम) (उसूले काफ़ी, किताबे हुज्जत, बाब 109, हदीस 1)
आइम्मा, अरकाने ज़मीन- इरशादे पैग़म्बरे अकरम (स0अ0व0व0) है के मेरे अहलेबैत (अ0) में से इमाम (अ0) वह दरवाज़ाए रहमत हैं जिसके बग़ैर जन्नत में दाखि़ला मुमकिन नहीं है, वह राहे हिदायत हैं के जो उस पर चला वह ख़ुदा तक पहुंच गया यही कैफ़ियत अमीरूल मोमेनीन (अ0) और उनके बाद के जुमला आइम्मा की है, परवरदिगार ने उन्हें ज़मीने कारकुन बनायाा है ताके अपनी जगह से हटने न पाए और इस्लाम का सुतून क़रार दिया है और राहे हिदायत का मुहाफ़िज़ बनाया है, कोई राहनुमा इनके बग़ैर हिदायत नहीं पा सकता है और कोई ‘ाख़्स उस वक़्त तक गुमराह नहीं होताा है जब तक इनके हक़ में कोताही न करे, यह ख़ुदा की तरफ़ से नाज़िल होने वाले जुमला उलूम, बशारतें, अन्जार सब के अमानतदार हैं और अहले ज़मीन पर उसकी हुज्जत हैं उनके आखि़र के लिये ख़ुदा की तरफ़ से वही है जो अव्वल के लिये है और इस मरहले तक कोई ‘ाख़्स इमदादे इलाही के बग़ैर नहीं पहुंच सकता है।
आइम्मा (अ0) रसूल (स0) वारिसे अम्बिया (स0)-- हमारे पास मूसा की तख़्ितयां और उनका असा मौजूद है और हमीं तमाम अम्बिया के वारिस हैं।
(इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलातो वस्सलाम)(काफ़ी 1 स0 231/2)
आइम्मा (अ0) अल्लाह के नूर हैं- आइम्मा (अ0) अल्लाह के नूर हैं, नूरे इमाम क़ुलूबे मोमेनीन में है, वह निस्फ़ुलनहार सूरज से ज़्यादा रोशन होता है, आइम्मा, मोमेनीन के क़ुलूब को मुनव्वर कर देते हैं, अल्लाह उनके नूर से जिसको चाहता है छिपाता है तो लोगों के कु़लूब तारीक हो जाते हैं, जब तक अल्लाह किसी के क़ल्ब को पाक न करे वह इन्सान हमसे मोहब्बत व दोस्ती नहीं रखता, हमसे सुलह रखने वाला क़ल्ब अल्लाह से सख़्त अज़ाब से और रोज़े क़यामत के अज़ीम ख़ौफ़ से महफ़ूज़ रहता है।
(इमाम मोहम्मदे बाक़र अलैहिस्सलातो वस्सलाम) (उसूले काफ़ी किताबुल हुज्जत)
आइम्मा (अ0) हुज्जतुल्लाह- हम अल्लाह की तरफ़ से निशानी, रहनुमा, हुज्जत, जानशीन, अमीन और पेशवा हैं। हम अल्लाह का ख़ूबसूरत चेहरा, देखती हुई आंख सुनने वाले कान हैं हमारे सबब अल्लाह अपने बन्दों को अज़ाब व जज़ा देता है।
(इमाम अली इब्ने अबूतालिब़ अलैहिस्सलातो वस्सलाम)
आइम्मा (अ0) अपने फ़िरक़े पर गवाह- रोज़े क़यामत हम हर गिरोह को उसके गवाह के साथ बुलाएंगे, और ऐ रसूल (स0) तुमको बनाएंगे उन सब पर गवाह, यह आायत उम्मते मोहम्मदिया के बारे में ख़ास तौर पर नाज़िल हुई है। इनमें से हर फ़िरक़ा अपने इमाम के साथ होगाा, हम उन पर गवाह होंगे और पैग़म्बरे अकरम (स0) हम पर गवाह होंगे।
(इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलातो वस्सलाम)- (उसूले काफ़ी किताबुल हुज्जत)
आइम्मा (अ0) से मोहब्बत - यूसुफ़ बिन साबित बिन अबी सईद, इमामे सादिक़ (अ0) से नक़्ल करते हैं के जब लोगों ने आपके पास हाज़िर होकर अर्ज़ की के हम आपसे क़राबते रसूल और हुक्मे ख़ुदा की बिना पर मोहब्बत करते हैं और हमारा मक़सद हरगिज़ किसी दुनिया का हुसूल नहीं है, सिर्फ़ रिज़ाए इलाही और आखि़रत मतलूब है और हम अपने दीन की इस्लाह चाहते हैं तो आपने फ़रमाया के तुम लोगों ने यक़ीनन सच कहा है, अब जो हमसे मोहब्बत करेगा वह रोज़े क़यामत दो उंगलियों की तरह हमारे साथ होगा।
(इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलातो वस्सलाम)- ( काफ़ी 8 स0 80106, तफ़्सीरे अयाशी 2स0 69/61)
आइम्मा (अ0) से मोहब्बत - हमारी मोहब्बत ईमान है और हमारी अदावत कुफ्ऱ है।
(इमाम मोहम्मदे बाक़र अलैहिस्सलातो वस्सलाम) (काफ़ी 1 स0 188/12)
आइम्मा (अ0) से मोहब्बत - जो हमसे मोहब्बत करेगा वह क़यामत में हमारे साथ होगा और अगर कोई इन्सान किसी पत्थर से भी मोहब्बत करेगा तो उसी के साथ महशूर होगा।
(पैग़म्बरे अकरम स0) (इमाली सुद्दूक़ स0 174/9)
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